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________________ ( 57 ) ही उपार्जित पापों का नाश कर मोक्ष जैसे अलभ्य और शाश्वत सुख को प्राप्त कर लेता है, भव भयहारिणी शुद्ध भावना से भरतेश्वर सम्राट ने सर्वज्ञता प्राप्त करली, ऐसे धर्म के चार मुख्य एवं प्रधान अंगों का पाराधन कर अनेक प्रात्मानों ने आत्म कल्याण किया है किन्तु मूर्ति पूजा से भी किसी की मक्ति हुई हो ऐसा एक भी उदाहरण उभयमान्य साहित्य में नहीं मिलता, यदि कोई दावा रखता हो तो प्रमाणित करे। इस स्वर्ण जौ की कहानी से तो महानिशीथ का फल विधान असत्य ही ठहरता है, क्योंकि-महानिशीथकार तो सामान्य पूजा से भी स्वर्ग प्राप्ति का फल विधान करते हैं और स्वर्ण जौ से नित्य पूजने वाला श्रेणिक राजा जाता है नर्क में, यह गड़बड़ाध्याय नहीं तो क्या है ? अतएव भरतेश्वर और श्रेणिक के मूर्ति पूजन सम्बन्धी कल्पित कथानक का प्रमाण देने वाले वास्तव में अपने हाथों अपनी पोल खुली करते हैं, ऐसे प्रमाण फूटी कौड़ी की भी कीमत नहीं रखते /
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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