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________________ ( 56 ) बताये / 1 नौकारसी प्रत्याख्यान स्वयं करें 2 कपलादासी अपने हाथों से मुनि को दान देवे. कालसौरिक कसाई नित्य 500 भैंसे मारता है एक दिन के लिये भी हिंसा रुकवादे, 4 पूणिया श्रावक की एक सामायिय खरीद ले, इस प्रकार चार उपाय बताये, किन्तु इनमें मूर्ति-पूजा कर नर्क निवारण का कोई मार्ग नहीं बताया। क्या प्रभु को भी मूर्ति पूजा का मार्ग नहीं सूझा ? बारहवां नहीं तो पहला स्वर्ग ही सही / इसे भी जाने दीजिये, पुनःमानव भव ही सही / इतना भी यदि हो सकता तो प्रभु अवश्य मूर्ति-पूजा का नाम इन चार उपायों में, या पृथक पांचवां उपाय ही बतलाकर सूचि त करते किन्तु जब मूर्ति-पूजा उपादेय ही नहीं तो बतलावे कहां से, श्रतएव स्पष्ट सिद्ध हो गया कि नियुक्ति के नाम से यह कथन केवल काल्पनिक ही है। प्रदेशी राजा ने अपने भंयकरपापों का नाश केवल,दया दान त्याग वैराग्य, तपश्चर्या आदि द्वारा ही किया है, उसने में अपने स्वर्ग गमन के लिये किसि मन्दिर का निर्माण नहीं क राया, न मूर्ति ही स्थापित की, न कभी पूजा आदि भी की। सुमुख गाथापति केवल मुनिदान से ही मानवभव प्राप्त कर मोक्ष मार्ग के सम्मुख हुआ, मेघकुँवर ने दया से ही संसार परिमित कर दिया, इसी प्रकार मेतार्य मुनि, मेघरथ राजा आदि के उदाहरण जगत प्रसिद्ध ही है, तपश्चर्या से धन्नाअणगार आदि अनेक महान् अत्माओं ने सुगति लाभ की है, यहां तक कि अनेक निरपराध नरनारियों की राक्षसी हिंसा कर डालने वाला अर्जुन माली भी केवल छः माह में
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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