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________________ (5) रोकने वाला कोई नहीं था ! किन्तु जब विद्वान लोग इस कथन को वीतराग वाणी रूप कसौटी पर कस कर देखेंगे तब यह स्पष्ट पाया जायगा कि मूर्ति-पूजा के प्रचारकों ने मूर्ति की महिमा फैलाने के लिये इसे महान् पुरूषों के जीवन में जोड़ कर जहां तहां से उल्लेख कर दिये हैं / इससे पाया जाता है कि यह स्वर्ण जौ का कथन भी भरतेश्वर के कल्पना चित्र की तरह अज्ञान लोगो को भ्रम में डालने का साधन मात्र है। श्रेणिक की जिन-मूर्ति पूजा तो इन्हीं के वचनों से मिथ्या ठहरती है, क्योंकि___ एक तरफ तो ये लोग किसी प्रकार के विधान बिना ही मु० पू० करने से बारवां स्वर्ग प्राप्त होने का फल विधान कर ते हैं / और दूसरी तरफ श्रेणिक राजा को सदैव 108 स्वर्ण से पूजने की कथा भी कहते हैं, इस हिसाब से तो श्रेणिक को स्वर्ग प्राप्ति होनी ही चाहिये ! जब कि मामूली चावलों से पूजने वाला भी स्वर्ग में चला जाता है तो स्वर्ण जौ से पूजने वाला देवलोक में जाय इसमें श्राश्चर्य ही क्या? किन्तु हमारे प्रेमी पाठक यदि आगमों का अवलोकन करेंगे या इन्हीं मूर्ति पूजक बन्धुओं के मान्य ग्रन्थों को देखेंगे तो आप श्रेणिक को नर्क गमन करने वाला पायेंगे? इसीसे तो ऐसे कथानक की कल्पितता सिद्ध होती है। इन के मान्य ग्रन्थकार ही यह बतलाते हैं कि जब प्रभु महावीर ने श्रेणिक को यह फरमाया कि यहां से मरकर तुम नर्क में जावोगे, तब यह सुनकर श्रेणिक को बड़ा दुःख हुआ उसने प्रभु से नर्क निवारण का उपाय पूछा, प्रभु ने चार मार्ग
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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