________________ (47) (5) ज्ञान-अर्थ समवायांग सूत्र में चौवीस जिनेश्वरों को जिस वृक्ष के नीचे केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ उस वृक्ष को केवल ज्ञान की अपेक्षा से ही चैत्य वृक्ष कहा है / इससे शान अर्थ सिद्ध हुआ, दूसरा वंदना में चेइयं शब्द पाया है उसका अर्थ भी ज्ञानवंत होता है / राज प्रश्नीय की टीका में साक्षात् प्रभु के वन्दन में भी चैत्य शब्द आया है वहां टीकाकार ने 'चैत्यं सु प्रशस्त मनोहेतुत्वात्' कहकर सर्वज्ञ कोही चैत्य कह दिया है। और दिगम्बर सम्प्रदाय के षड़पाहुड में तो णा मयं जाण चेदिहरं' ( ज्ञान मय प्रात्मा को चैत्यगृह जानो ) कहा है इस पर से ज्ञान और ज्ञानी शर्थ भी सिद्ध होता है। (6) गति विशेष अर्थ-ज्ञाता धर्म कथांग के अध्ययन 2-4-8- में निम्न प्रकार पाया है। सिग्छ, चण्डं, चवलं, तुरियं, चेइयं (7) बनाना-- अर्श आचारंग अ० 11 उ०२ में इस प्रकार पाया है,- .. आगारिहिं आगाराई चेइयाई भवति [8] वृक्ष-अर्थ उत्तराध्ययन अ०७ में इस प्रकार आया वाएण हीर माणम्मि चेइयं मिमणोरमे ऐसे विशेषार्थी चैत्य शब्द का केवल जिन मन्दिर और जिन मूर्ति अर्थ करना मात्र हठ धर्मीपन ही है।