________________ इसके सिवायरुक्खंवा चेइअकडं, थुर्ववाचेइअकडं, (श्राचारांग) ___(2) बाग-अर्थ में भगवती उत्तराध्ययनादि में पाया है, जैसे 'पुष्फवत्तिए चेइए' मंडिकुच्छंसि चेइए और मूर्ति-पूजक वीर पुत्र श्री आनन्द सागरजी ने अपने अनुवाद किये हुए 'अनुत्तरोपपातिकदशा' 'विपाक सूत्र' में नगरी के साथ आये हुए सभी चैत्य शब्ददों का अर्थ 'उपवन' किया है जो बाग के ही अर्थ को बताने वाला है। (3) चिता पर बने हुए स्मारक इस अर्थ के चेइय शब्द श्राचारांग और प्रश्न व्याकरण में आते हैं, जैसे 'मडयचेहए सुवा' आदि है। (4) चेइय शब्द का साधु अर्थ उपासक दशांग व भगव. ती में लिया है , और अभयदेव सूरि ने भी स्थानांग सूत्र की टीका में चैत्य शब्द का अर्थ साधु इस प्रकार किया है चैत्यमिवजिनादि प्रतिमेव चैत्यं श्रमणं और वृहद्कल्प भाष्य उद्देशा 6 में प्राहा अाधाय-कर्म गाथा की व्याख्या में क्षेम कीर्तिसूरि लिखते हैं कि 'चैत्योहे शिकस्य' अर्थात् साधु को उद्देश कर बनाया हुआ श्राहार / इसके सिवाय दिगम्बर सम्प्रदाय के षड़पाहुड़ ग्रंथ में भी यही अर्थ किया है। देखिये बुद्धं बोहंतो अप्पाणं वेइयाइँ अण्णंच / पंच महव्वय शुद्धं, णाणमयं जाण चेदिहरं // 8 / चेहय बंधं मोक्खं, दुक्ख, सुक्खंच अप्पयंतस्य चेहहरो जिणमग्गे छक्काय हियँ भणियं // 6 //