________________ (43) बात है ? अतएव सिद्ध हुआ कि श्रमणोपासक वंशपरंपरा नुसार लौकिक देवों का पूजन कर सकते हैं। अगर इसको धर्म नहीं मानने की बुद्धि है तो इतने पर से सम्यक्त्व चला नहीं जाता। और 'कयबालिकम्मा' शब्द का अर्थ एकान्त 'देव पूजा' भी तो नहीं हो सकता, क्योंकि (क) प्रथम तो यह शब्द स्नान के विस्तार को संकोच कर रक्खा गया है। (ख दूसरा ज्ञाता धर्म कथांग के 8 वे अध्ययन में मल्लिनाथ के स्नानाधिकार में भी यह शब्द पाया है। इसलिये इसका देव पूजा अर्थ नहीं होकर स्नान विशेष ही हो सकता है। क्योंकि गृहस्थावस्था में रहे हुए तीर्थकर प्रभु भी चक्र वर्तीपन के सिवाय, माता पिता के अलावा और किसी को चन्दन, नमन, पूजा नहींकरते अतएव यहां देवपूजा अर्थ नहीं होकर स्नान विशेष ही माना जायगा / इस तरह वलिकर्म का अर्थ जिन मूर्ति पूजा मानना बिलकुल अनुचित और प्रमाण शून्य दिखाता है। जो कार्य प्राश्रव वृद्धि का तथा गृहस्थों के करने का चरितानुवाद रूप है उसमें धार्मिकता मान कर उसमें धार्मिक विधि कह डालने वाले वास्तव में अपनी कूट नीति का परिचय देते हैं। क्योंकि श्रावके के धार्मिक जीवन का जहां वर्णन है वहां इसी भगवती सूत्र के तुंगिया के श्रावो के वर्णन में यह बताया है कि