________________ (44) - 'वे धावक जीवाजीप आदि नव पदार्थों के जानकार निग्रंथ प्रवचन में अनुरक्त, दान के लिए खुले द्वार वाले तथा भण्डार और अन्तःपुर में भी विश्वास पात्र हैं, जो शीलवत गुणवत प्रत्याख्यान आदि का पठन करते थे अष्टमी,चतुर्दशी पूर्णिमा, अमावश्या को पौषधोपवास करने वाले साधु साध्वि यों को दान देने वाले शंका कांक्षादि दोष रहित, व सूत्र अर्थ जानकार ऐसे अनेक गुण वाले थे, उन्होंने स्थविर भगवन्त से तप संयम आदि विषयों पर प्रश्नोत्तर कीये थे, इत्यादि.' ___ जबकि-श्रावको के धर्म कर्तव्यों के वर्णन करने में मूर्तिपूजा की गंध भी नहीं है, तो फिर स्नान करने के स्नानागार में मूर्ति पूजा का क्या सम्बन्ध ? अतएव ‘कयबलिकम्मा' से जिन मूर्ति पूजने का मन कल्पित अर्थ करके उन माननीय श्रावकों को मूर्ति पूजक ठहराने की मिथ्या कोशिष न्याय संगत नहीं है / ऐसी निर्जीव दलीलों में तो मूर्ति-पूजा का सिद्धांत एकदम लचर और पाखण्ड युक्त सिद्ध होता है।