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________________ (42) (1) भरतेश्वर चक्रवर्ती सम्राट ने, चक्ररत्न, गुफा, द्वार आदि की पूजा की लौकिक देवों के आराधना के लिये तप किया / ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति ) (2) शांति प्रादि तीन तीर्थंकरों ने भी चक्रवर्ती अवस्था में भरतेश्वर की तरह चक्ररत्नादि लौकिक देवों की पूजा की थी। (त्रिशष्ठि शलाका पुरुष चरित्र ) (3) अरहन्नक-श्रमणोपासक ने नावा पूजन किया, और बलबाकुल दिये / (ज्ञाताधर्मकथा) (4) अभयकुमार ने धारिणी का दोहद पूर्ण करने को अष्टमभक्त तप कर देवाराधन किया / (ज्ञाताधर्मकथा) (5) कृष्ण वासुदेव ने अपने छोटे भाई के लिये अष्टम त. पकर देवाराधन किया। (अंतकृत दशांग) (6) हेमचन्द्राचार्य ने पद्मनी रानी को नग्न रख कर उस के सामने विद्या सिद्ध की। (योगशास्त्र भाषान्तर प्रस्तावना (७मूर्ति पूजक सम्प्रदाय के जिनदत्त सूरि आदि प्राचा यों ने भी देवी देवताओं का आराधन किया (मूर्ति-पूजक ग्रंथ () मूर्ति पूजक साधु प्रतिक्रमण में देवी देवताओं की प्रार्थना करते हैं जो प्रत्यक्ष है। जब कि खुद मूर्ति पूजक साधु ही मुनि धर्म से विरूद्ध होकर लौकिक देवताओं का आराधन श्रादि करते हैं तो संसार में रहे हुए गृहस्थ श्रावक लौकिक कार्य और कुला चार से लौकिक देवताओं को पूजे इसमें आश्चर्य की क्या
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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