________________ (35) 'अरिहंत' शब्द है ही नहीं, हमारी समाज में अब तक विना ढूंढे किसी भी प्रति का अनुकरण कर अशुद्ध पाठ दे दिया जाता है यह प्रथा विचारकों का भ्रम में डाल देती है इसलिये हमें सच्चे शोधक बनना चाहिये, सच्चे अन्वेषक के सामने पूर्व की चालाकियां अधिक समय नहीं ठहर सकती श्राशा है समाज के विद्वान इस ओर ध्यान देंगे श्रागमोदय समिति की प्रति का पाठ इस प्रकार है: आगमोदय समिति के औपपातिक सूत्र के चालीलवें सूत्र पृष्ठ 67 पं० 4 से __ अम्मडस्सणो कप्पई अन्न उत्थिया वा अन्न. उत्थिय देवयाणिवा, अण्णउत्थिय परिग्गहियाणिवा 'चेइयाई वंदित्तएवा णमंसित्तएवा जावपज्जुवासित्तएवा एण्णत्थ अरिहंतेवा श्ररिहंत चेइयाई वा / ___ इस पर से उपासगदशांग का अरिहंत शब्द स्पष्ट प्रक्षिप्त क्षेपक सिद्ध होता है, इसके सिवाय कल्पनीय प्रतिज्ञा में जो अरिहंत शब्द है वह भी अभी विचारणीय है, फिर भी जो इसको निःसंकोच मान लिया जाय तो भी इसका परमार्थ गणधरादि से लेकर सामान्य साधुओं के वंदन का ही स्पष्ट होता है, अन्यथा अंवड़ के लिए गणधरादि के वन्दना सिद्ध करने का कोई सूत्र ही नहीं रहेगा। सिवाय अरिहंत और अरिहंत चैत्य (साधु) को वन्दन नमस्कार करनाकल्पता है।