________________ ( 33 ) चेहएत्ति-चितलेप्यादि चयनस्य भावः कर्मवेति चैत्यं, संज्ञाशब्दत्वाद् देव विवं तदाश्रयत्वातू तद्गृहमपि चैत्यं तच्चेह व्यंतरायतनम् नतु भगवतामहेतामायतनम् / इससे सिद्ध हुआ कि प्रादर्श श्रमणोपासकों को मूर्ति-पूजक ठहराने का कथन एकान्त झूठ है / और साथ ही मूर्तिपूजा आगम सम्मत है ऐसे कहने वालों के इस सिद्धांत को फेंक देने योग्य निस्सार घोषित करता है। जिसके पास खरा भागम प्रमाण हो वह ऐसा मिश्या प्रपञ्च क्यों करने लगे? यह बात अच्छी तरह समझ में आ सके ऐसी सरल है /