________________ ( 32 ) अर्थात्-अंतक्रतो, अनुत्तरोपपपातिकों, सुखान्तकरों और दुःखान्तकरों के नगर, उद्यान, चैत्य थे, इस प्रकार आये हुए चैत्य शब्द से यह प्रश्न होता है कि क्या इस सभा के बनाये हुए जिन मन्दिर थे, ऐसा अर्थ माना जायगा? नहीं, कदापि नहीं! यहां का निराबाध अर्थ जहां अन्तकृतादि रहते थे वहां व्यन्तरायतन था यही उपयुक्त और संगत है। यहां आये हुए चैत्य शब्द का अर्थ उनके ब. नाये हुए जिन मन्दिर या उनके जिन-मन्दिर ऐसा मानने वाले से जब यह पूछा जाता है कि ऐसा अर्थ मानने पर आपको दुःखांत विपाक में वर्णित उन दुष्ट मलेच्छ, अनार्य, लोगों के मी जिन-मन्दिर मानने पड़ेंगे। क्योंकि यह 'चैत्य' शब्द तो वहां भी पाया है ऐसा मानने पर जिन मन्दिर का महत्व ही क्या रहेगा? इतना पूछने पर यहां तो चट वे हमारे मूर्ति पूजक बन्धु कह देंगे कि नहीं यहां चैत्य शब्द का अर्थ जिनमन्दिर-जिन मूर्ति नहीं होकर व्यन्तर मन्दिर ही अर्थ होगा इस तरह एक समान वर्णन में एक जगह जिन-मन्दिर व दूसरी जगह व्यन्तरायतन अर्थ कैसे हो सकता है ? वास्तव में ऐसे वर्णनों में चैत्य शब्द का अर्थव्यंतरायतन होता है। इसके लिये उपासगदशांग में नगरियों के साथ आये हुए नाम प्रमाण है / जैसे पुण्यभद्दे चेहए, कोहगे चेइए, गुणसिलाए चेइए आदि ऐसे वाक्यों में चैत्य शब्द का अर्थ व्यंतरायतन ही होता है, स्वयं आगमों के टीकाकार भी हमारे इस अर्थ से सहा मत हो कर इनके कहे हुए अर्थ का खण्डन करते हैं, देखिये