________________ ( 31) अर्थात् -उपासक दशांग में क्या है ? उपासक दशांग में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता, पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक पारलोकिक ऋद्धि विशेष, उपासकों के शीघ्र व्रत, वेरमणव्रत, गुणपौषधोपवास व्रत, सूत्रग्रहण, तपोधान, उपासक प्रतिमा उपसर्ग सल्लेहणा, भक्तप्रत्याख्यान, पादोपगमन, उच्चकुल में जम्म फिर बोधि (सम्यक्तव) लाभ, अन्तक्रिया करना ये सब वर्णन किये जाते हैं। इस सूत्र में कहीं भी मूर्ति पूजा का नाम तक नहीं है, न मन्दिर बनवाने या उसके मन्दिर होने का ही लेख है, फिर ये कैसे कहा जाता है कि समवायांग में प्रत्यक्ष है ? विचार करने पर मालूम होता है कि 'चेइयाई' जो नगरी के साथ उद्यान और इसमें रहे हुए 'व्यन्तरायतन' के वर्णन में पाया है इसीसे उन श्रावकों के मन्दिर होने या मूर्ति पूजने का कहते हैं, किन्तु इनका यह कथन भी एक दम असत्य है। क्योंकि जिस प्रकार उपासक दशांग की सूची बताई गई है उसी प्रकार अन्तकृत दशांग अनुत्तरोपपातिकदशा, विपाक इन की भी सूचि दी गई है सभी में एक समान पाठ पाया है, देखिये अंतगडाणं णगराई, उज्जाणाई, 'चेइयाई अणुत्तरो. वाइयाणं णगराई, उज्जाणाई, 'चेहयाई' सुहविवागाणं णगराई, उज्जाणाई, 'चेइयाई' दुहविवागाणं णगाराई, उज्जा गाई, 'चेश्याई