________________ ( 30) हो और उपासकदशांग का 'चेइयाई शब्द भी स्वामीजी की मान्यतानुसार मूल पाठ का नहीं ऐसा पाया जाता है, तभी तो स्वामीजी समवायांग के मात्र 'चेइयाई' शब्दकी ओर झपरे हैं ? यद्यपि विजयानन्दजी उपासकदशांग में 'अरिहंत चेह. याई' शब्द स्पष्ट स्वीकार कहीं करते हैं तथापि इनके उन्न प्रयास से यह अच्छी तरह प्रमाणित हो गया कि उपासकदशांग में उक्त पाठ नहीं होने रूप सत्य इनको भी कुछ तो कबूल है ही और इसीसे समवायांग की ओट लेने का इनको मिथ्या प्रयास करना पड़ा। (ई) अब समवायांग में चैत्य शब्द किस प्रसंग पर पाया है यह बता कर स्वामीजी के मिथ्या प्रयास का स्फोट किया जाता है। समवायांग में उपासक दशांग की नोंध लेते हुए बताया गया है कि उपासक दशांग में क्या वर्णन है। जैसे-सेकितं, उवासम्म दसानो ! उवासग दसासुग उवासयाणं, णगराई, उज्जाणाई, 'चेइयाई वणखंडा, राया. णो, अम्मापियरो, समोसग्णाई, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय, परलोइय इविविसेसा, उवासयाणं, सीलव्यय, वेरमण, गुणपच्चक्खाण, पोसहोववास, पडिवज्जियात्रओ, सुय. परिग्गहा, तबोवहाणाई, पडिमानो, उवासग्गा संलेहणाश्री भत्तपच्चखाणाई पायोगमणाई, देवलोग गमणाई सुकुल प. चाया, पुणोवोहि लाभो, अंतकिरियानो बाघविज्जति /