________________ (27) चरित्र का चित्रण किया गया है ) मूर्तिपूजा सम्बन्धी पाठ नहीं है।' अतएव अानन्द श्रावक को मूर्तिपूजक कहना मिथ्या ही है। अब विजयानन्दजी ने जो सूत्रों के संक्षिप्त होने का कारण बताया और इस लिये समवायांग का प्रमाण जाहिर किया है। उस पर भी थोड़ा विचार किया जाता है ( 1 ) स्वामीजी ने उपासकदशांग के श्रानन्दाधिकार में मूर्ति पूजा का पाठ नहीं होना इसमें सूत्रों का संक्षिप्त होना कारण बताया है / यह भी असंगत है, यह दलील यहां इस लिये लागू नहीं हो सकती कि-जिस अानन्द के चरित्र कथन में सूत्रकार ने उसकी ऋद्धि, सम्पत्ति, गाड़े, जहाजें, गायें श्रादि का वर्णन किया हो, जिसके वन्दन, व्रताचरण के वर्णन में व्रतों का पृथक् 2 विवेचन किया हो / घर छोड़कर किस प्रकार पौषधशाला में धर्माराधन करने गये, किस प्रकार एकादश प्रतिज्ञाएँ आराधन की और अवधिज्ञान पैदा हुआ, गौतम स्वामी को वन्दन करना, परस्पर का वार्तालाप गौतम स्वामी को शंका उत्पन्न होना, प्रभु का समाधान करना गौतम स्वामी का श्रानन्द से क्षमा याचने प्राना, आनन्द का अनशन करके स्वर्ग में जाना इत्यादि कथन जिसमें विस्तार सहित किये गये हों। यहां तक कि खाने पीने के चांवल, घी, पानी आदि कैसे रक्खे श्रादि छोटी-छोटी बातों का भी जहां उल्लेख किया गया हो, जिसके चरित्र चित्रण में सूत्र के तृतीयांश पृष्ठ लग गये हों, उसमें केवल मूर्तिपूजा जैसे दैनिक कर्तव्य का नाम तक भी नहीं होने से ही सूत्रों को संक्षिप्त कर देने की दलील ठोक देना असंगत नहीं तो क्या