________________ (24) में निम्न रेखांकित शब्द बढ़ाकर कहते हैं कि-श्रानन्द श्रावक ने जिन प्रतिमा वांदी है। बढ़ाया हुश्रा शब्द सम्बन्धित वाक्य के साथ इस प्रकार है___ 'अण्ण उत्थि परिग्गहियाणि 'अरिहंत' चेहयाई' उक्त पाठ में रेखांकित अरिहंत शब्द अधिक बढ़ाकर इस शब्द से यहां यह अर्थ करते हैं कि___'अन्य तीर्थियों के ग्रहण किये हुए अरिहन्त चैत्य-जिन प्रतिमा' (इसे वन्दन नहीं करूं) ___ इस तरह ये लोग पाठ बढ़ाकर और उसका मनमाना अर्थ करके उससे मूर्तिपूजा सिद्ध करना चाहते हैं, किन्तु इस प्रकार की चालाकी सुज्ञ जनता में अधिक देर नहीं टिक सकती, क्योंकि समझदार जनता जब प्राचीन प्रतियों का निरीक्षण करके उनमें बढ़ाया हुआ अरिहंत शब्द नहीं देखेगी तो आपकी चालाकी एक दम पकड़ी जा सकेगी, क्योंकि प्राचीन प्रतियों में यह अरिहंत शब्द है ही नहीं। इसके सिवाय (अ) एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता से प्रकाशित उपासकदशांग की प्रति में तो 'अरिहंत चेइयाई' शब्द नहीं है और उसके अंग्रेजी अनुवादक ए० एफ० रुडोल्फ होनल साहब ने अनेक प्राचीन प्रतियों पर से नोट में ऐसा लिखा ___'चैत्य और अरिहंत चैत्य शब्द टीका में से लेकर मूल में मिला दिया है, जिस टीका में लिखा है कि-पूजनीय अरिहंत देव या चैत्य है।