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________________ (21) कथानक के पात्र स्वतंत्र हैं, वे अपनी इच्छानुसार कार्य कर सकते हैं, उनके किये कार्य सभी के लिए सर्वथा उपादेय नहीं हो सकते, और विधि विधान जो होता है वोसभी के लिए समान रूप से उपादेय होता है, उसके लिए खास शब्दों में कथन किया जाता है। अमुक कार्य इस प्रकार करना ऐसा स्पष्ट वाक्य विधि में गिना जाता है। जिस प्रकार मूर्ति पूजक आचार्यों ने मूर्ति पूजा किस प्रकार करना, किस समय किस सामग्री से करना इस विषय में ग्रन्थों के पृष्ठ के पृष्ट भर डाले हैं, इसी प्रकार यदि गणधरोक्त उभयमान्य सूत्रों में भी कहीं बताया गया होता या केवल इतना भी कहा गया होता कि-'श्रावकों को मूर्ति-पूजा करना चाहिये, मुनिओं को दर्शन यात्रा आदि करना व उस संबन्धी उपदेश देना चाहिए, संघ निकलवाना चाहिए, आदि कथन होता तो ये लोग सर्व प्रथम ऐसा प्रमाण बड़े 2 अक्षरों में रखते किन्तु जब सूत्रों में ही नहीं तो लावे कहां से ? अतएव सूत्रों में मूर्ति पूजा का विधान होने का कहना और सूर्याभ के कथा. नक की अनुचित साक्षी देना मृषावाद और हिंसावाद के पोषण करने समान है। समझदारों को चाहिए कि वे निष्पक्ष बुद्धि से विचार कर सत्य को ग्रहण करें। MaruN AHANE AAR 50a
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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