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________________ (20) मूर्ति बड़े 2 शहरों में रही हुई है, इसी प्रकार महत्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, गोखले आदि के हजारों की संख्या में चित्र तथा कहीं 2 किसी की मूर्ति भी दिखाई देती है, कई देशी राज्यों में राजाओं के पुतले ( मूर्तियें ) बड़ी सजधज के साथ बगीचों ( गार्डनों ) में रक्खे हुए मिलते हैं, ये सभी स्मारक हैं, माननीय पुरुषों की यादगार में बने हैं, इसी प्रकार जगत हितकर्ता विश्वोपकारी. देवेन्द्र नरेन्द्रों के पूज. नीय, अनम्तज्ञानी प्रभु की मूर्तिएं भक्तों द्वारा बनाई जाय तो इसमें श्राश्चर्य ही क्या है ? जब हम सभी कलाओं के साथ चित्र कला को भी अनादि मानते हैं और देवों की कला कुशलता विशिष्ट प्रकार की कहते हैं / तो फिर महान् ऐश्व र्यशाली देव जो प्रभु के उत्कृष्ट रागी और भक्त हैं वे यदि उनकी हीरे जवाहिरात की भी मूर्ति बनवाले तो इसमें श्राश्चर्य की कोई बात नहीं है। जो जिसे आदरणीय मानता है वह उसकी यादगार में उसका चित्र बनावे या बनवाले यह स्वाभाविक है, किन्तु ये सभी स्मारक में ही गिने जाते हैं, इसमें धार्मिकता का कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसे कृत्यों में धर्म समझकर अमित द्रव्य व्यय और अगणित स, स्था. वर जीवों का विनाश कर डालना, केवल मूर्खता ही है। यदि मूर्ति-पूजक पं० बेचरदासजी के शब्दों में कहा जाय तो धार्मिक विधानों की सिद्धी किसी कथा की ओट लेकर नहीं हो सकती, उनके लिए विधि वाक्य ही होने चाहिए, इसलिए धर्म के मुख्य अङ्ग कहे जाने वाले कार्य के लिए कोई खास विधि का प्रमाण नहीं बताकर किसी कथा की पोट लेना और उसके भाव को तोड़ मरोड़ कर मनमानी खींचतान करना यह अपने पक्ष कोही कल्पित और असत्य सिद्ध करना है।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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