________________ (16) जब हमारे मूर्ति-पूजक बंधु इन बातों पर विचार करेंगे तब उन्हें भी विश्वांस होगा कि-मूर्ति पूजा को धर्म कहना मिथ्या है। सूर्याभ की यह करणी जीताचार की थी, धर्माचार (आत्मोत्थान ) की नहीं। वर्तमान में भी राजा महाराजा विजया दशमी को कुलदेवी, तलवार, बन्दुक, तोप, घड़ियाल नक्कारे, निशान, हाथी, घोड़ा आदि की पूजा करते हैं, यह सभी कृत्य परंपरा से चले आते हुए रिवाज में ही सम्मिलित हैं / सम्यक्त्वी श्रावक भी दीगवली पर वही, दवात, कलम, धन, सुपारी के बनाये हुए गणेश. कल्पित लक्ष्मी प्रादि की पूजा करते हैं, ये सभी कार्य सांसारिक पद्धति के अनुसार है, इसमें धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है। न कोई सम्यक्त्वी ऐसी क्रियाओं में धर्म मानते ही हैं / इस प्रकार के लौकिक कार्य पूर्व समय में बड़े 2 श्रावकों ने भी किये हैं, उनमें भर. तेश्वर, अरहन्नक श्रावक श्रादि के चरित्र ध्यान देने योग्य हैं ऐसे सांसारिक कृत्यों को धर्म कहना, या इनकी श्रोट लेकर निरर्थक पाप वर्द्धक क्रिया में धर्म होने का प्रमाणित करना, जनता को धोखा देना है। . ___ यदि थोड़ी देर के लिए हम हमारे इन भोले बन्धुओं के कथनानुसार देवलोक स्थित मूर्तियों को तीर्थङ्कर मूर्ति मान ले तो भी किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं होती, क्यों कि- जिस प्रकार वर्तमान समय में श्रादर्श नेताओं के चित्र मूर्तिएं स्मारक रूप में बनाये जाते हैं, बम्बई में स्वर्गीय विट्ठलभाई पटेल की प्रतिमा है, महाराणी विक्टोरिया की