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________________ (8) १-द्रौपदी प्रश्न-द्रौपदी ने जिन प्रतिमा की पूजा की है जिसका कथन 'ज्ञाता धर्म कथांग' में है और वह श्राविका भी यह उसके 'णमोत्थुणं' पाठ से मालूम होता है, इससे मूर्ति पूजा करना सिद्ध होता है. फिर आप क्यों नहीं मानते ? , उत्तर-द्रौपदी के चरित्र का शरण लेकर मूर्ति-पूजा सिद्ध करना, वस्तु स्थिति की अनभिज्ञता, और बागम प्रमाण की निर्बलता जाहिर करना है। यहां असलियत को स्पष्ट करने के पूर्व पाठकों की सरलता के लिए 'जिन' शब्द का अर्थ और उसकी व्याख्या करदेना उचित समझता हूं। जिन शब्द के मूर्ति पूजक, प्राचार्य श्री हेमचन्द्रजी ने निम्न चार अर्थ किये हैं। 1. तीर्थंकर 2. सामान्य केवली 3. कंदर्प कामदेव 4. नारायण हरि / ( हेमीनाम माला ) (1) तीर्थङ्कर बाह्य और अभ्यंतर शत्रुओं को जीतने वाले अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त बल के धारक, देवेन्द्र नरेन्द्रादि के पूजनीय, 34 अतिशय 35 वाणी अतिशय के धारक, विश्व वंद्य, साधु आदि चार तीर्थ की स्थापना करने वाले तीर्थङ्कर प्रथम 'जिन' हैं।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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