________________ (2) सामान्य केवली-बाह्या-भ्यन्तर शत्रुओं से रहित, अनन्त झानादि चतुष्टय के धारक, कृतकृत्य केवली महाराज द्वितीय 'जिन' हैं। ये दोनों प्रकार के 'जिन" भाव 'जिन' हैं / इनके शरण में गया हुआ प्राणी संसार सागर को पार कर मोक्ष के पूर्ण सुख का भोक्ता बन कर जन्म मरण से मुक्त होता है। ____ कंदर्प (कामदेव)-यह तीसरा दिग्विजयी 'जिन' है, जिसमें देव, दानव, इन्द्र, नरेन्द्र, व मनुष्य, पशु, पक्षी, सभी को अपने प्राधीन में रखने की शक्ति है। . इस देव के प्रभाव से बड़े 2 राजा महाराजाओं के आपस में युद्ध हुए हैं / रावण, पद्मोत्तर, कीचक, मदन रथ, आदि महान नृपतित्रों के राज्यों का नाश कर उन्हें नर्क गामी बनाया है। बड़े 2 ऋषि मुनियों के वर्षों के तप संयम को इस कामदेव ने इशारे मात्र से नष्ट कर उन्मार्ग गामी बना डाला है। नन्दीसेण जैसे महात्मा को इस जिन देव ने अपने एक ही झपाटे में धराशायी कर अपना पूर्ण आधिपत्य जमा दिया, इसी विश्वदेव की प्रेरणा से ही तो एक तपस्वी साधु विशाल नगरी के नाश का कारण बना / इस देव की लीला ही अवर्णनीय है। यह बड़े 2 उच्च कुल की कोमलागियों के कुल गौरव का नाश करते शरमाता नहीं, अनेक महा सतियों को इस जिन देव की कृपा से प्रेरित हुए नरपिशाचों द्वारा भयङ्कर कष्ट सहन कर दर दर मारी मारी फिरना पड़ा। समाज का अपमान सहन कर अनेक प्रकार की यातनाएं