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________________ (7 ) हठ को छोड़ते नहीं हैं / पंडित बेचरदासजी जैसे तो बिरले ही होंगे जो इस विषय में गुरुओं की परवाह नहीं करते हुए सूत्रों का अध्ययन-मनन करके मू०पू० विषयक सत्य हकीकत प्रकट कर अज्ञान निद्रा में सोई हुई जनता के समक्ष सिद्ध कर दिखाई उसका भाव यह है कि-- "मूर्ति-पुजा आगम विरुद्ध है / इसके लिये तीर्थंकरों ने सूत्रों में कोई विधान नहीं किया। यह कल्पित पद्धति है"। देखो-'जैन साहित्यमां विकार थवा थी थयेली हानि' या हिंदी में 'जैन साहित्य में विकार'। . इस सत्य कथन का दण्ड भी पंडितजी को भोगना पड़ा मूर्ति-पूजक समाज ने आपका बहिष्कार कर दिया, शाब्दिक बाण वर्षा की झड़ी लग गई, सद्भाग्य से पंडितजी के मूल्य वान शरीर पर आक्रमण नहीं हुआ, इसलिए यदि कोई सत्य विचार रखते भी हैं तो सामाजिक भय से सत्य समझते हुए भी प्रकट करते डरते हैं। इत्यादि पर से यह स्पष्ट होगया.कि- हमारे ये भोले भाई गुरुओं के पढ़ाये हुए तोते हैं, इसलिए शास्त्रज्ञान से प्रायः अनभिज्ञ इन बन्धुओं को कुछ भी नहीं कहकर इनके गुरुषों की दलीलों को ही कसौटी पर कसकर विचार करेंगे जिससे पाठकों को यह मालूम हो जाय कि-इनकी युक्ति और प्रमाणों में कितना सत्य रहा हुआ है / पाठकों की सरलता के लिए हम इनकी दलीलों का प्रश्नोत्तर रूप में समाधान करते हैं।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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