________________ जेकर पढे तो उसको रहस्य बताते नहीं, मनमें यह समझते हैं कि अपढ़ रहेंगे तो हमको फायदा है, नहीं तो हमारे छिद्र काढ़ेंगे, ऐसे जानके सर्व विद्या गुप्त रखने की तजवीज करते हैं, इसी तजवीज ने हिंदुस्तानियों का स्वतंत्र पणा नष्ट करा और सच्चे धर्म की वासना नहीं लगने दी, और नयेर मतों के भ्रम जाल में गेरा और अच्छे धर्म वालों को नास्तिक कहवाया। यद्यपि आत्मारामजी का यह प्राक्षेप वेदानुयायियों पर है किन्तु वे स्वयं अपने शब्दों का कितने अंशों में पालन करते थे , इसका निर्णय इन्हीं के बनाये 'हिंदी सम्यक्त्व शल्योद्धार' चतुर्थ वृत्ति के 'श्रावक सूत्र न पढ़े' शीर्षक प्रकरण से हो सकता है, इस प्रकरण में श्राप एकान्त निषेध करते हैं / कुछ भी हो पर स्वामीजी का कारण तो सत्य था सो अज्ञान तिमिर भास्कर में बता ही दिया, उन्हीं के शब्दों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अपने स्वार्थ पर कुठाराघात होने के कारण ही श्रावकों को खूब पठन में अनधिकारी घोषित किया गया है। १-श्रावक सूत्र पढ़ सकता है या नहीं ? यह विषय एक स्वतंत्र निरन्ध की आवश्यकता रखता है / यहां विषयान्तर के भय से उपेक्षा की जाती है। इतना होते हुए भी जो इने गिने पढ़े लिखे अागम वांचक व्यक्ति हैं वे अपने गुरुओं के कथन को असत्य मानते हुए भी उनके प्रभाव में श्राकर तथा दुराग्रह के कारण पकड़ी हुई