________________ (5) प्रथम तो मूर्ति-पूजक गृहस्थ लोगों का यह कथन इनके माननीय धर्म गुरुत्रों के बहकाने का ही परिणाम है, क्योंकि इनके गुरुवर्यों ने सूत्र स्वाध्याय के विषय में श्रावकों को अयोग्य ठहरा कर इनका अधिकार ही छीन लिया है / जिस से कि ये लोग खुद अागम से अनभिज्ञ ही रहते हैं, और गुरुओं से सुनी हुई अपनी अयोग्यता के कारण सूत्र पठन की ओर इनकी रुचि भी नहीं बढ़ती, यदि किसी जिज्ञासु के मन में श्रागम वांवन की भावना जागृत हो तो भी गुरुप्रो की बताई हुई अयोग्यता और महापाप के भयसे वे अागम वांचन से वंचित ही रहते हैं, उन्हें यह भय रहता है कि कहीं थोड़ा सा भी आगम पठन कर लिया तो व्यर्थ में महापाप का बोझा उठाना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में वे लोग 'बाबा वाक्यं प्रमाणं' पर ही विश्वास नहीं करें तो करें भी क्या ? ____ इस प्रकार गृहस्थ वर्ग को अन्धकार में रखकर पूज्य वर्ग स्वेच्छानुसार प्रवृत्ति करे इसका मुख्य कारण यही हो सकता है कि यदि श्रावक वर्ग को सूत्र पठन का अधिकार दिया गया, तो फिर सत्यार्थी, तत्व गवेषी अभिनिवेष-मिथ्या स्व-रहित हृदय वाले, मुमुक्षुओं की श्रद्धा हमारी प्रचलित मूर्ति पूजा पद्धति को छोड़कर शुद्ध मार्ग में लगजायगी, जिससे हमारी मान्यता, पूजा, स्वार्थ, एवं इन्द्रिय पोषण में भारी धका लगेगा। देखिये इन्हीं के विजयानन्द सूरि स्वकृत "प्रशान-तिमिर-भास्कर" की प्रस्तावना पृ० 27 पं०३ में लिखते हैं कि 'जब धर्माध्यक्षों का अधिक बल होजाता है तब वे ऐसा बन्दोबस्त करते हैं कि कोई अन्य जन विद्या पढ़े नहीं