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________________ ( 3 ) तेणं एयारूवेण विहारेणं विहरमाणा बहूहि वासाहि समणोवासगपरियागं पाउणति, पाउणिता पाराहसि उप्पन्नसि वा अणुप्पन्नसि वा बहूई भत्ताई प्रणरणाई छेदेइ बहूई भचाई अणपणाई छेदेइत्ता पालोइयपडिक्कता समाहिपचा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवताए उवत्ता. रो भवंति तंजहा महड्ढिएसु महज्जुइएसु जाव महासुखेसु सेसं त चेव जाव एस ठाणे पायरिए जाव एगंतसम्म साहू / (3) योगशास्त्र में हेमचन्द्राचार्य ने सम्यक्त्व पूर्वक बारह व्रत का विवेचन किया है, देखो प्रकाश 1 अंतिम दश श्लोक से दूसरे प्रकाश तक। (4) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में भी श्री हेमचन्द्राचार्य ने प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ स्वामी की देशना का वर्णन करते हुए गृहस्थ धर्म के सम्यक्त्व सहित बारह व्रत की विस्तृत व्याख्या की है। ___(5) ऐसे ही उपासकदशांग सूत्र में आदर्श रूप दश श्रावकों के जीवन में उपादेय नैतिक धार्मिक क्रिया का शिक्षा लेने योग्य विस्तृत इतिहास बताया गया है, भगवती, शाताधर्मकथा श्रादि सूत्रों में भी श्रावक धर्म के पालकों का इतिहास उपलब्ध होता है। इस प्रकार जहां कहीं भी श्रावक धर्म का निरूपण और इतिहास मिलता है उसका मतलब सूत्र कृतांग के सदृश ही है। सिवाय इसके गृहस्थ धर्म के विधि नियमादि का उपदेश
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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