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________________ // ॐ नमः सिद्धेभ्यः // श्री लोकाशाह मत-समर्थन चरितधम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-अगारचरितधम्मे चेव, अणगारचरित्तधम्मे चेष // __ [स्थानांग सूत्र] अनन्त, अक्षय, केवलज्ञान, केवल दर्शन के धारक, विश्वोपकारी, त्रिलोक पूज्य, श्रमण भगवान श्रीमहावीर प्रभु ने भव्य जीवों के उद्धार के लिए एकान्त हितकारी मोक्ष जैसे शाश्वत सुख को देने वाले ऐसे दो प्रकार के धर्म प्रति. पादन किये हैं। जिसमें प्रथम गृहस्थ [ श्रावक ] धर्म और दूसरा मुनि (अणगार) धर्म है। ___ गृहस्थ धर्म की व्याख्या में सम्यक्त्व, द्वादशवत, ग्यारह प्रतिमा, आदि का विस्तृत विचार आगमों में कई जगह मिलता है / प्रमाण के लिए देखिए (१)गृहस्थ धर्म की संक्षिप्त व्याख्या आवश्यक सूत्र में इस प्रकार बताई है। -
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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