________________ ( 3 ) बिल्कुल सहज होगया। बिना पैसे चढ़ाये धर्म की कोई भी क्रिया असफल हो जाती थी। धन, जन, सुख एवं इच्छित कार्य साधने के लिए दुखीशक्त जन विविध प्रकार की मान्यताएँ ( मांगनी ) लेने लगे। इस प्रकार त्यागी वर्ग ने धर्म के वास्तविक स्वरूप को भुलाकर विविध प्रकार से मन्दिर मूर्तियों का पूजना पूजाना और इस प्रकार पाखण्ड एवं अंध विश्वास का प्रचार करना ही अपना प्रधान कर्त्तव्य बना लिया था। धर्मोपदेश में भी वही स्वार्थ पूरित नूतन ग्रन्थ, कथाएँ, चरित्र और रास महातम्य श्रादि जनता को सुनाने लगे जिससे जनता बस मन्दिरों के सुन्दराकार पाषाण को ही पूजने में धर्म मानने लगी। सत्य धर्म के उपदेशक ढूंढने पर भी मिलना कठिन होगये, इस प्रकार अवनति होते होते जब भयंकर स्थिति उत्पन्न होने लगी, जब ऐसे निकृष्ट समय में जैन शासन को फिर एक महावीर की आवश्यता हुई, बिना महावीर के बहुत समय से गहरी जड़ जमाये हुए पाखण्ड का निकन्दन होना असम्भव था, ऐसे विकट समय में इसी जैन समाज को प्रकृति ने एक वीर प्रदान किया। विक्रमीय पन्द्रहवीं शताब्दी के वृद्धकाल में जैन समाज को उन्नत बनाने, और भगवान् महावीर के शास्त्रों में छिपे हुए पुनीत सिद्धांतों का प्रचार कर पाखंड का विध्वंस करने के लिये इसी जैन जाति में दूसरा धर्म क्रांतिकार श्रीमान् लोकाशाह का प्रादुर्भाव हुआ / श्रीमान् अपनी प्राकृतिक प्र. तिभा से बाल्यकाल ही में प्रौढ़ अनुभवियों को भी मार्ग दर्शक बन गये, आप रत्न परीक्षा में निपुण एवं सिद्धहस्थ थे एक बार इसी रत्न परीक्षा में आपने बड़े 2 अनुभवी एवं वृद्ध