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________________ ( 4 ) जौहरियों को भी अपनी परीक्षा बुद्धि से चकित कर दिया। फलस्वरूप आप राज्यमान्य भी हुए, कुछ समय तक आपने राज्य के कोषाध्यक्ष के पद को भी सुशोभित किया, तदनन्तर किसी विशेष घटना से संसार से उदासीनता होने पर राज्य काज से निवृत्त हो, श्रात्मचिन्तन में लगे / श्रीमान् पठन मनन के बड़े शौकीन थे, उचित संयोगों में आपने जैन आगमों का पठन एवं मनन किया, जिससे आपके अन्तर्चक्षु एकदम खुल गये, पुनः 2 शास्त्र स्वाध्याय एवं मनन होने लगा, साथ ही वर्तमान समाज पर दृष्टिपात की / शास्त्रों के पठन मनन से श्रीमान् की परीक्षा बुद्धि एकदम सतेज होगई / समाज में फैले हुए पाखंड और अन्धविश्वास से आपको अपार खेद हुआ, ओर से छोर तक विषम परिस्थिति देखकर आपने पुनः सुधारकर धर्म को असली स्वरूप में लाने के लिये पूज्य वर्ग से तत् विषयक विचार विनिमय किया, परिणाम में शिथिलाचारिता एवं स्वार्थपरता का ताण्डव दिखाई दिया, जब वीतराग मार्ग की यह अवस्था इस वीर श्राद्धवर्य से नहीं देखी गई, तब स्वयं दृढ़ता पूर्वक कटिबद्ध हो प्रण किया कि-" मैं अपने जीतेजी जिन मार्ग को इस अवनत अवस्था से अवश्य पार कर शुद्ध स्वरूप में लाउंगा, और शुद्ध जैनत्व का प्रचार कर पाखंड के पहाड़ को नष्ट करूंगा, इस पुनीत कार्य में भले ही मेरे प्राण चले जांय पर ऐसी स्थिति मैं शक्ति रहते कभी भी सहन नहीं कर सकता" शीघ्र ही आपने सुधार का सिंहनाद किया, पाखंड की जड़ें हिल गई,पाखंडी घबड़ा गये, इस वीर का प्रण ही पाखंड को तिरोहित करने का श्री गणेश हुआ / लगे सद्धर्म का प्रचार करने, जनता भी मूल्यवान् वस्तु की ग्राहक होती है। जब तक सच्चे रत्न,
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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