________________ (16) Do logo0ooooo ooooo 2@og Da QCXG DANG समर्पण NEKpoorycosycycocycocococonome * - --0000wwwcom तीर्थकर प्रभु द्वारा स्थापित, चतुर्विध संघ रूप तीर्थ की परम पवित्र सेवा में-- मूर्ति के मोह में पड़कर स्वार्थपरता, शिथिलता, और प्रशता के कारण कई लोग हमारी साधुमार्गी समाज पर अनुचित एवं असत्य आक्षेप करके सम्यक्त्व को दुषित करने की चेष्टा करते रहते हैं, उन आक्षेपकारों से हमारी समाज की रक्षा हो, और शंका जैसी सम्यक्त्व नाशिनी राक्षसी की परछाई से भी वञ्चित रहें, इसी भावना से यह लघु पुस्तिका भक्ति पूर्वक समर्पित करता हूं। 'किंकर-- --रत्न