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________________ इस अनुवाद में मैंने बहुत से स्थानों पर बहुत परिवर्तन कर दिया है, परिवर्तन प्रायःभावों को स्पष्ट करने या विस्तृत करने के विचार से ही हुआ है, इसलिए गुजराती संस्करण वाले भाइयों को भी इसे देखना आवश्यक हो जाता है। जो सजन विद्वान् और संकेत मात्र में समझने वाले हैं उनके लिए तो प्रस्तुत पुस्तक ही ज्ञानसुन्दरजी की पुस्तक के उत्तर में पर्याप्त है, किन्तु जो भाई उन्हीं की पुस्तक का उत्तर और उनकी उठाई हुई कुतर्कों का खण्डन स्पष्ट देखना चाहें उन्हें कुछ धैर्य धरना होगा, क्योंकि--यह ग्रन्थ मात्र एक ही विषय का होने पर भी बहुत बड़ा हो जाने वाला है, अतएव ऐसा कार्य विलम्ब और शांति पूर्वक होना ही अच्छा है, अब तक उसका प्रकाशन नहीं हो जाय पाठक इससे ही संतोष करें। प्रस्तुत पुस्तक के विषय में जिन जिन पूज्य मुनि महाराजात्रों और श्राद्ध बन्धुओं ने अपनी अमूल्य सम्मति प्रदान की है उन सबका मैं हृदय से आभारी हूं। इसके सिवाय इस हिंदी संस्करण के प्रकाशन में आर्थिक सहायदाता अहमदनगर निवासी मान्यवर सेठ लालचन्दजी साहब का भी यहां पूर्ण आभार मानता हूं कि-जिनकी उदारता से 'आज यह पुस्तिका प्रकाश में आई। बस इतने निवेदन मात्र को पर्याप्त समझ कर पूर्ण करता हूं। विनीत लेखक
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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