________________ ( 200 ) पटलुंज नहीं पण भगवती वगेरे सूत्रोमा केटलाक श्रावकों नी कथाश्रो श्रावे छे, ते मां तेश्रोनी चर्यानी पण नोंध छे परं. तु तेमां एक पण शब्द एवो जणातो नथी के जे ऊपर थी श्रापणे श्रापणी उभी करेली देव पूजननी श्रने तदाधित देव द्रव्यनी मान्यताने टकावी शकीए / ___ हुं श्रापणी समाज ना धुरंधरों ने नम्रता पूर्वक विनन्ति करूं छं के तेश्रो मने ते विषेनुं एक पण प्रमाण वा प्राचीन विधान-विधि वाक्य बतावशे तो हुँ तेश्रोनो घणोज ऋणी थइश / ... ...(श्रागे पृ० 131 में)...." हुँ तो त्यां सुधी मान छु के श्रमण ग्रन्थकारो जेश्रो पंच महाव्रत ना पालक छे, सर्वथा हिंसा ने करता नथी, करावता नथी, अने तेमां सम्म ति पण श्रापता नथी, जेओ माटे कोइ जातनो द्रव्यस्तव विधेय रूपे होइ शकतो नथी, तेत्रो हिंसा मूलक पा मुर्तिवाद ना विधान नो अने तदवलम्बी देव द्रव्यवाद ना विधान नो उल्लेख शी रीते करे ?" तत्त्वेच्छुक पाठक महोदयो ? मूर्ति पूजक समाज के एक प्रसिद्ध विद्वान के उक्त तटस्थ विचार मनन करने में आपको भारी सहायता देंगे, इस पर से आप अच्छी तरह से समझ सफेंगे कि-हमारे मू िपूजक बंधु सन्मा से वंचित हैं, इन्हें सत्यासत्य के निर्णय करने की रुचि नहीं है इसीसे ये लोग श्रांखें बंदकर सूत्र तथा चारित्र धर्म का घातक, संसार वर्द्धक एवं सम्यक्त्व को दृषित करने वाली ऐसी मूर्ति पूजा के चक्कर में पड़े हुए हैं। ऐसी हालत में आपका यह कर्तव्य हो जाता है किप्रथम आप स्वयं इस विषय को अच्छी तरह समझ लें, फिर