________________ ( 201) अपने से मिलने वाले सरल बुद्धि के मूर्ति पूजक बंधुओं को केवल परोपकार बुद्धि से योग्य समय नम्र शब्दों से समझाने का प्रयास करें / आवेश को पास तक नहीं फटकने दें। तो.! माशा है कि आप कितने ही भद्र बंधुओं का उद्धार कर सकेंगे, उन्हें शुद्ध सम्यक्त्वी बना सकेंगे, और वे भी आपके सहयोग से शुद्ध धर्म की श्रद्धा पाकर अपनी आत्मा को उन्नत बना सकेंगे। इस छोटीसी पुस्तिका को पूर्ण करने के पूर्व मैं मूर्ति पूजक विद्वानों से निवेदन करता हूं कि-वे एक बार शुद्ध अन्तःकरण से इस पुस्तक को पठन मनन करें. उचित का आदर करें और जो अनुचित मालूम दे, उसके लिये मुझे लिखें, मैं उनकी सूचना पर निष्पक्ष विचार करूंगा, और योग्य का श्रादर एवं अयोग्य के लिये पुनः समाधान करने का प्रयास करूंगा। मू पूजक विद्वान लोग यदि मूर्तिपूजा करने की भगवदाशा 32 सूत्रों के मूल पाठ से प्रमाणित कर देंगे, तो मैं उसी समय स्वीकार कर लूंगा। यदि इस पुस्तिका में कहीं कटु शब्द का प्रयोग होगया हो तो उसके लिये मैं सविनय क्षमा चाहता हुआ निवेदन करता हूं कि-पाठकवृन्द कृपया इसके भावों पर ही विशेष लक्ष्य रखते हुए आई हुई शाब्दिक कटुता को कटु औषधि के समान न्यायिहर मान कर ग्रहण करें, अप्रसन्न नहीं होवें, इस तरह मनन करने पर आपकी श्रद्धा शुद्ध होकर आपको विशुद्ध जैनत्व के उपासक बना देगी जिससे मेरा प्रयत्न भी सफल होगा।