________________ ( 166 ) 'मूर्तिवाद चैत्यवाद पछीनो छ,एटले तेने चेत्यवाद जेटलो प्राचीन मानवाने आपणी पासे एक पण एवं मजबूत प्रमाण मथी के जे शास्त्रीय सूत्र विधि निष्पन्न ) होय वा ऐतिहासिक होय, श्राम तो श्रापणे कुलाचार्यो शुद्धां मूर्तिवाद ने अनादि नो ठराववानी तथा वर्द्धमान भाषित जणाववानी बणगा फूंकवा जेवी वातो कर्या करीए छीए, पण ज्यारे ते वातो ने सिद्ध करवा माटे कोई ऐतिहासिक प्रमाण वा अंग सूत्रनुं विधि वाक्य मांगवा मां आवे छे स्यारे पापणी प्रवाह वाही परंपरानी ढाल ने आगल धरीए छीए अने बचाव माटे श्रापणा घडिलो ने पागल करीए छीर मैं घणी कोशिष करी तो पण परंपरा अने बावा वाक्यं प्रमाणं सिवाय मूर्तिवाद ने स्थापित करवा माटे मने एक पण प्रमाण वा विधान मली शक्युं नथी वर्तमान कालमा मूर्ति पूजा ना समर्थन मां केटलीक कथाओ ने(चारण मुनि नी कथा, द्रौपदी नी कथा, सूर्याभ देवनी कथा अने बिजयदेवनी कथा ) पण पागल करवा मां आवे छे, किन्तु वाचकोए था बाबत खास लक्षमा लेवानी छे के विधि ग्रन्थोंमां दर्शावातो विधि प्राचार ग्रन्थों मां दर्शावातो श्राचार विधान खास शब्दो मांज दर्शाववामां आवे छे, पण को. इनी कथाश्रो मां थी के कोइना ओठां लइने अमुक 2 प्राचार वा विधान उपजावी शकातो नथी / .."(आगे पृ० 127 में )..."ते छतां तेमां जे विधान नी गंध पण न जणाती होय से विधान ना समर्थन माटे आपणे कथाश्रो नां ओठां लइए ने कोई ना उदाहरणों आपीए. ते बावत ने हुं 'तमस्तरण' सिवाय बीजा शब्द थी कही शकतो नथी, 'हुं हिम्मत पूर्वक कही शकुं छं के मैं साधुओ तेम श्रावकों माटे देव दर्शन के देव पूजन नु विधान कोई अंग सूत्रोंमांजोयुनथी, वांच्यु नथी