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________________ (16) सेम्पल भी तो चखिये, वे हमारे पूज्य लोकाशाह को निहव हमारे पूज्य महात्माओं को कुलिंगी, नास्तिक, उत्सूत्र प्ररु. पक, शासन भंजक, प्रादि नीच सम्बोधनों से याद किया है, जिसका कटुफल तो अभी उन्हें भोगना बाकी ही है। इसके लिए आपको व उन्हें तैयार रहना चाहिए / ४-जिस ज्ञानसुन्दरजी के वर्तमान प्रकाशन की अभ्यासी भाई सराहना करते हैं, उसमें कितनी कल्पितता भरी है, यह तो उसके उत्तर के प्रकट होने पर ही आपको मालूम होगा। ५--अभी तो अभ्यासी भाई में अर्थ समझने की भी शक्ति नहीं है, इसीसे वे वाक्यों का अनर्थ कर रहे है, मैंने अप्रमाणित नियुक्ति के लिए "निर्गतायुक्तिर्यस्याः" लिखा है पर हमारे अभ्यासी भाई इसे ही नियुक्ति का अर्थ समझ रहे हैं, क्या इससे हमारे अभ्यासी बन्धु प्रथम कता के अभ्यासक सिद्ध नहीं होते ? अन्त में मैं अभ्यासी महाशय को यह बतला देना चाहता हूँ कि- आपने बूंघट की ओट में रह कर मू० पू० प्रतिकार समिति से इसके खण्डन करने की जो प्रेरणा की है, इससे हमें किसी प्रकार का भय नहीं है / यदि कोई भी महाशय अनुचित रुप से कलम चलावेंगे तो उनका उचित सत्कार करने को हम भी तत्पर हैं / मैं अपने प्रेमी पाठकों से भी निवेदन करता हूं कि वे कथित अभ्यासी महाशय के झांसे में नहीं आकर शुद्धांतः करण से उसे अवलोकन कर सत्य के ग्राहक बनें / इति , रतनलाल डोशी, सैलाना--
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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