________________ ( 15) प्रथम यह तो बताइए कि--यह पीतवसन, गृहस्थों से पम चम्पी, भार वहन अनर्थ वचन, दण्ड प्रयोग, आदि किस जैन साधुत्व संस्कृति का परिणाम है। महाशय ! न तो मूर्तिपूजा ही जैन संस्कृति है, न तत् सम्बंधी उपदेश देना जैन साधुत्व संस्कृति है। यह है केवल अजैन एवं सांसारिक संस्कृति ही, जिनके प्रभाव में आकर यह हेय प्रवृत्ति जैन समाज में इतनी वृद्धि पाई है। . ३-अभ्यासी महाशय भाषा शैली के लिए ऐतराज करते हैं, किन्तु इसके पूर्व इन्हें अपने कहे जाने वाले न्यायांभो. निधि, युगावतार महात्मा रचित सम्यक्त्व शल्योद्धार का भाषा माधुर्य देख लेना चाहिए, जि लमें उन मिष्ट भाषी महा. नुभाव ने साधुमार्गी समाज के परम माननीय पूजनीय श्री. श्रीमद् ज्येष्टमल्लजी महाराज के लिए निम्न शब्द काम में लिए हैं___ “जेठा, मूढ़मति, जेटा निव, जेठे के बाप के चौपड़े में लिखा है" आदि / ___ इसी प्रकार श्रीमनी महासती पार्वती जी को दुर्मतिजी श्रादि दुर्शब्द अमरविजयजी ने लिखे हैं, और जैन ध्वज में प्रसिद्धि प्राप्त बल्लभविजय जी का तो कहना ही क्या है ? उन्होंने तो पुराना रिकार्ड ही तोड़ डाला। इसके सिवाय अभ्यासी महानुभाव को ज्ञानसुन्दरजी के तुच्छ प्रकाशनों के शब्द तो मधुर ही भाषित होते होंगे, क्यों कि वे तो इनके गुरु हैं, और लिखा गया है इनके विरोधियों ( स्थानकवासियों) के विरुद्ध, उनके शब्द तो अश्लील होते हुए भी इन्हें अमृत सम मिष्ट लगते हैं, पर जरा उनका