________________ (187) जइणं भंते जिण पडिमाणं बन्दमाणे, अच्चमाणे सुयधम्म चरित्त धम्म ल भेज्जा ? गोयमा ? णो अढे समढे / सेकेणटेणं भते एवं वुच्चइ ? गोयमा ? पुढवी कायं हिंसइ, जाव तस कार्य हिंसइ / अर्थात्-श्री गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-अहो भगवान् ! जिन प्रतिमा की वन्दना अर्चना करने से क्या श्रत धर्म चारित्र धर्म की प्राप्ति होता है ? उत्तर-यह अर्थ समर्थ नहीं। पुनः प्रश्न-ऐसा क्यों कहा गया? उत्तर-इसलिए कि-प्रतिमा पूजा में पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक के जीवों की हिंसा होती इस प्रकार विवाह चूलिका में भी मू० पू० द्वारा सूत्र चारित्र धर्म की हानि वताई गई है। यद्यपि विवाह चूलिका से उक्त सम्वाद प्रभु महावीर और श्री गौतम स्वामी के बीच होना पाया जाता है, किन्तु यह ध्यान में रखना चाहिए कि-ग्रन्थकारों की यह एक शैली है, जो प्रश्नोत्तर में प्रसिद्ध और सर्व मान्य महान आत्माओं को खड़ा कर देते हैं / वर्तमान के बने हुए कितने ही ऐसे स्वतंत्र ग्रन्थ दिखाई देते हैं जिनमें उनके रचनाकार कोई अन्य महात्मा होते हुए भी प्रश्नोत्तर का ढांचा भगवान महावीर और श्री गौतमगणधर के परस्पर होने का रचा गया है, ऐसे ही जो सूत्र ग्रन्थ पूर्वधर आदि आचार्य रचित हैं, उनमें भी ऐसी भी शैली पकड़ी गई है, तदनुसार विवाह चूलिका के रचयिता श्री भद्रबोहु स्वामी ने भी जनता को भगवदाज्ञा का स्वरूप बताने के लिये उक्त कथन का श्री महावीर और गौतम गणधर के