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________________ (185) (6) चौदह पूर्वधर श्रीमान् भद्रबाहु स्वामी ने व्यवहार सूत्र की चूलिका में चन्द्रगुप्त राजा के पांचवें स्वप्न के फल में भविष्य में कुगुरुओं द्वारा प्रचलित होने वाली मूर्ति पूजा की भयंकरता दिखाते हुए लिखा है कि "पंचमए दुवालस फणि संजुत्तो, करहे अहि दिट्ठो, तसफलं-दुवाल सवास परिमाणो दुक्कालो भविस्सइ तत्थ कालिय-सुयप्पमुहाणि सुत्ताणि वोच्छिज्जिसंति, चेइयं उया. बेइ, दवहारिणे। मुणिणो भविस्संति, लोभेण माला रोहण देवल-उवहाण-उज्जमण-जिण बिम्ब-पइछावण विहिं पगासिस्संति, अविहि पंथे पडिसह तत्थ जे केइ साहू साहूणिो . सावय-सावियाश्रो, विहि-मम्गे बुहिसंति तसिं बहूणं हिलणाणं, णिंदणाणं, खिसणाणं, ठारहणाणं, भविस्सई"। ___ अर्थात्-पांचवें स्वप्न में द्वादश फलों वाले काले सर्प को जो देखा है उसका फल यह है कि भविष्य में द्वादश वर्ष का दुष्काल पड़ेगा, उस समय का लिका आदि सूत्र विच्छेद जायँगे, द्रव्य रखने वाले मुनि होंगे, चैत्य स्थापना करेंगे, लोभ के वश होकर मूति के गले में मालारोपण करेंगे, मन्दिर, उपधान, उजमणा करावेंगे, मूर्ति स्थापन व पतिष्ठा की विधि प्रकट करेंगे, अविधि मार्ग में पड़ेंगे, और उस समय जो कोई साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका, विधि मार्ग में प्रवर्तने वाले होंगे, उनको बहुत निंदा, अपमान, अप शब्दादि से हीलना करेंगे। प्रिय पाठक वृन्द ! श्रीमद्भद्रबाहु स्वामी का उक्त भविष्य कथन बराबर सत्य निकला, ऐसा ही हुआ, और अब तक बरा. र हो रहा है।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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