________________ (181) में चिरकाल से रूढिं रूप चला पाता है, सो मी संसार मीरु गीतार्थ स्वमति कल्पित दूषणे करी दृषित न करे। . (अशान तिमिर भाष्कर पृ० 264 ) इस उत्तर में यह स्पष्ट कहा गया है लि-चैत्यवंदन सूत्र में नहीं कहा है, पुनः स्पष्टीकरण देखिए__"कितनीक कियां को जे पागम में नहिं कथन करी है तिनको करते हैं, और जे आगम ने निषेध नहीं करी हैचिरंतन जनों ने प्राचरण करी है तिनको प्रविधिकह करके निषेध करते हैं, और कहते हैं यह क्रियाओ धर्मी जनां को करणे योग्य नहीं है, किन किन क्रियायो विषे"चैत्य कृत्येषु. स्नात्रबिम्ब प्रतिमाकरणादि,” तिन विषे पूर्व पुरुषों की परंपरा करके जो विधि चली आती है तिसको प्रविधि कहते (अशान तिमिर भास्कर पृ० 296 ) श्री विजयानन्दसूरि के उक्त कथन से यह स्पष्ट होगया कि-चैत्य कराना, स्नात्र पूजा, बिम्ब प्रतिमा स्थापना आदि कृत्य सूत्रों में नहीं कहे, किन्तु केवल पूर्वजों से चली आती हुई रीति है। (2) संघपट्टक कार श्री जिन वल्लभसूरि क्या कहते हैं देखिये "आकृष्टं मुग्ध-मीनान् बडिशपि शितवद् विबमादर्श्य जैनं / तनाम्ना रम्यरूपा-नयवर-कमठान स्वेष्ट-सिद्धथै विधान्य / यात्रा स्नात्राद्युपायैर्नमसितक-निशा जागरायै श्छलैश्च / श्रद्धालु म जैनैश्चलित इव शठैर्वच्यते हा जनोऽयम् // 21 //