________________ ( 180) नहीं है / कोणिक राजा प्रभु का परम भक्त था. सदेव प्रभु के समाचार मंगवाया करता था। सम्वाद प्राप्त करने को उसने कितने ही नौकर रख छोरे थे / जो कि प्रभु के विहारादि के समाचार हमेशा पहुंचाया करेंऐसा औपपातिक सूत्र में कथन है, किन्तु ऐसे स्थान पर भी यह नहीं लिखा कि कौणिक महाराज ने एक छोटासा भी मन्दिर बनाया हो, या मूर्ति के दर्शन पूजन करता हो, इस पर से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि मूर्ति-पूजा शास्त्रोक्त नहीं है। हमारे इतने प्रयास से मूर्ति-पूजा अनावश्यक और वीत. राग धर्म के विरुद्ध प्रमाणित हो चुकी, तथापि अब मू० पू० की हेयता दिखाने को मूर्ति-पूजक समाज के मान्य ग्रन्थों के ही कुछ प्रमाण देकर यह अनावश्यक सिद्ध की जाती है। (1) सव प्रथम श्री विजयानन्द सूरिजी के निम्न प्रश्नोसर को ध्यान पूर्वक पढिये। प्रश्न-तुमने कहा है जो सूत्र में कथन करा है सो प्ररूपण करे, जो पुनः सूत्र में नहीं है और विवादास्पद लोगों में है। कोई कैसे कहता है और कोई किस तरह कहता है, तिस विषयक जो कोई पूछे तब गीतार्थ को क्या करना उचित है ? उत्तर-जो वस्तु अनुष्ठान सूत्र में नहिं कथन खरा है, करने योग्य चैत्य वन्दन आवश्यकादि षत् और प्राणा तिपात की तरह सूत्र में निषेध भी नहीं करा है, और लोगों