________________ (176 ) (4) श्री वल्लभविजयजी गप्प मालिका में लिखते हैं कि श्री भद्रबाहु स्वामी ने व्यवहार सूत्र की चूलिका में विघि पूर्वक प्रतिष्ठा करने का कहा है। इन प्रमाणों पर पाठक विचार करें, इनसे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि व्यवहार सूत्र की चूलिका श्री भद्रबाहु स्वाभी रचित है, इसे अस्वीकार कर श्री संतवाल रचित, कल्पित तथा जाली कहने वाले स्वयं जालबाज और अविश्वास के पात्र ठहरते हैं / इस प्रकार एक सत्य वस्तु को असत्य कहकर तो श्री न्यायविजयजी ने न्याय का खून ही किया है। ऐसी अनेक करतूते मात्र अपने मन कल्पित मत को जनता के गले मढ़ने के लिये की जाती है, इसलिये तत्वगवेषी महानुभावों को इनसे सदैव सावधान रहना चाहिये। अब यह सेवक तत्वेच्छुक महानुभावों से निवेदन करता है कि वे स्वयं निर्णय करे, सत्य का स्वीकार करते हुए स्वपर कल्याणकर्ता बने। मू० पू० प्रमाणों से मूर्ति-पूजा की अनुपादेयता यह तो मैं पहले ही बता चुका हूं कि मूल अंगोपांगादि 32 सूत्रों में कहीं भी मूर्ति पूजा करने, मन्दिर बनवाने, पहाडों में भटकने श्रादि की आशा नहीं है, और न किसी साधु या श्रावक ने ही वैसा किया होऐसा उल्लेख ही मिलता है। सूत्रों मेजहां 2 श्रावकों का वर्णन आया है वहां उनके प्रभु वन्दन धर्मश्रवण, व्रताचरण, व्रतपालन, कष्ट सहन श्रादि का कथन तो है। किन्तु मूर्ति पूजा के सम्बन्ध में तो एक अक्षर भी