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________________ ( 175) (5) उत्तराध्ययन की नियुक्ति में श्री गौतम स्वामी ने साक्षात् प्रभु को छोड़कर अष्टापद पहाड़ पर सूर्य किरण पकड़ कर चढ़े, ऐसा बिना किसी मूलाधार के ही लिख दिया (6) श्रावश्यक नियुक्तिकार ने श्रावकों के मंदिर बनवाने पूजा करने आदि विषय में जो अडंगे लगाये हैं. ये सब बिना मूल के ही झाड़ पैदा करने बराबर है। इस विषय में और भी बहुत लिखा जा सकता है किन्तु ग्रंथ बढ़ जाने के भय से अधिक नहीं लिख कर केवल मूर्ति पूजक समाज के विद्वान पं० बेचरदासजी दोशी रचित जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानि नामक पुस्तक के पृ० 1.3 का अवतरण दिया जाता है, पंडितजी इन टीकाकारों के विषय में क्या लिखते हैं, जरा ध्यान पूर्वक उनके हृदयोद्गारों को पढिये। ___ "मारुं मानवू छेके कोई पण टीकाकारे मूलना प्राशय ने मूलना समय ना वातावरण नेज ध्यानमां लईने स्पष्ट करवो जोइए, श्रारीते टीकाकरनारो होय तेज खरो टीकाकार होइ शके छे, परन्तु मूल नो अर्थ करती वखते मौलिक समय ना वातावरण नो ख्याल न करतां जो श्रापणी परिस्थिति ने ज अनुसरिए तो ते मूलनी टीका नथी पण मूलको मूसल करवा जे छ, हुं सूत्रोनी टीकाओ सारी रीते जोई गयो छु, परन्तु तेमां मने घणे ठेकाणे मूलनुं मूसल करवा जेवू लाग्यु छे, अने तेथी मने घणुं दुःख थयुं छे, प्रा संबंधे अहिं विशेष लखवू अप्रस्तुत छ, तो पण समय श्राव्ये सूत्रों ने टीकाश्रो ए विषे हुं विगतवार हेवाल आपवानुं मारूं कर्तव्य चूकीश नहिं
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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