________________ (174) "प्रभावक चरित्र में लिखा है कि-सर्व शास्त्रों की टीका लिखी थी वो सर्व विच्छेद होगई"। .. ___ उक्त कथन पर से यह तो सिद्ध हो गया कि-प्राचीन टीकाएँ जो थी वो विच्छेद--नष्ट हो चुकी, और अब जो भी टीकाएं श्रादि हैं वे प्रायः नूतन टीकाकारों के मत पक्ष में रंगी हुई हैं, और अनेक स्थलों पर मूलाशय विरुद्ध मनमानी व्याख्या भी की गई है, इन मन्दिर मूर्तियों के लिये ही कितनी मनमानी की गई है, इसके कुछ नमूने देखिये (1) प्राचारांग की नियुक्ति में तार्थ यात्रा करने का बिना मूल के लिख दिया है। (2) सूत्र कृतांग, उपासकदशांग आदि की टीका में भी वृत्तिकारों ने मूर्ति पूजा के रंग में रंग कर सर्वज्ञ नहीं होते हुए भी सैकड़ों ही नहीं हजारों वर्ष पहले की बात सर्वज्ञ कथित आगमों से भी अधिक टीकाओं में लिख डाली। (3) कल्पसूत्र के मूल में साधुओं के चातुर्माप करने योग्य क्षेत्र में 13 तेरह प्रकार की सुविधा देखन की गणना की गई है, उनमें मंदिर का नाम तक भी नहीं है, किन्तु टीकाकार महोदय ने मूल से बढ़कर चौदहवां जिन मंदिर की सुविधा का वचन भी लिख मारा है। (4) अावश्यक नियुक्ति में भरतेश्वर चक्रवर्ती ने अष्टापद पर श्री ऋषभदेव स्वामी और भविष्य के अन्य 23 तीशंकरों के मंदिर मूर्ति बनवाये ऐसा बचन बिना ही मूल के लिख डाला है।