________________ बुद्धि और नर्क गमन करने वाले बताये हैं, वहां उक्त मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तरकार अपना बचाव करने के लिए उन देवालयों को म्लेच्छों, मच्छी मारों, यवनों आदि के बताते हैं, और इस बात को सिद्ध करने के लिए प्रश्न व्याकरण का एक पाठ भी निम्न प्रकार से पेश करते हैं__ "कयरे जे तेसो परिया मच्छवं धासा उणिया जाव कूर कम्मकारी इमेव बहवे मिलेख जाति किते सब्वे जवणा" | (पृ० 282) उक्त पाठ भी स्वेच्छा से घटा बढ़ा कर दिया गया है, इस प्रकार का पाठ काई प्रश्नव्याकरण में नहीं है और न यह मन्दिर मूर्ति से ही सम्बन्ध रखता है, इस प्रकार मन माना अंश इधर उधर से लेकर मिला देना सरासर अनर्थ है। (11) श्री विजयानन्द सूरिजी “जैनतत्वादर्श' पृ० 231 में लिखते हैं कि___ "श्रावकों जिन मन्दिर बनाने से, जिन पूजा करने से सघम्मिवत्सल करने से, तीर्थयात्रा जाने सें, रथोत्लव, अठाई उत्सव,प्रतिष्ठा, अरु अंजन शलाका करने से, तथा भगवान के सन्मुख जाने से, गुरु के सन्मुख जाने से, इत्यादि कर्तव्य से, जो हिंसा होवे सो सर्व द्रव्य हिंसा है, परन्तु भाव हिंसा नहीं, इसका फल अल्प पाप अरु बहुत निर्जरा है, यह भगवती सूत्र में लिखा है, यह हिंसा साधु आदि करते हैं"। इस प्रकार श्री विजयानन्दसूरि ने एकदम मिथ्या ही गप्प मारदी है, भगवती सूत्र में उक्त प्रकार से कहीं भी नहीं लिखा है, हां, शायद सूरिजी ने अपनी कोई स्वतंत्र प्राइवेट, भगवती बनाली हो, और उसमें ऐसा लिखकर फिर दूसरी को इस प्रकार बताते रहे हों तो यह दूसरी बात है ?