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________________ (171) साध्वी (6) श्रावक (7) श्राविका ए सात क्षेत्रे धन खर्च वानों हुकम फरमाव्यों छे” / ___ इस प्रकार श्रावक शब्द का मन कल्पित ही अर्थ किया गया है / जब कि-सूत्रों में स्पष्ट श्रावक के कर्तव्य बताये गये है उन सब की उपेक्षा कर मनमाना अर्थ करना साफ अनर्थ है। (E) इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र के पाठ का अर्थ करते हुए मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० 278 में लिखा है कि___"उत्तराध्ययनना 28 मा अध्ययन मां कह्या मुजब सम्यक्त्व ना आठ आचार सेवन कर्या छे तेमां सात क्षेत्र पण आवी मया, कारण के ते आचारों मां स्वधर्मी वात्सल्य तथा प्रभावना ए बे प्राचार कह्या छे, तो स्वधर्मी वात्सल्य मा साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, ए चार क्षेत्र जाणवा, ने प्रभावना मां जिन बिंब, जिन मन्दिर तथा शाल, ए त्रण प्रावी गया, एमाणन्द कामदेवादि तथा परदेशी राजाए पण करेल छे"। इस प्रकार मन्दिर मूर्ति सिद्ध करने के लिए अर्थ का अनर्थ किया गया है। (१)श्री भवगती सूत्र का नाम लेकर मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० 287 में जो अनर्थ किया गया है वह भी जरा देख लीजिए " स्थायर तीर्थ ते शेव्रुजय, गिरनार, नन्दीश्वर, अष्टापद, आबू, सम्मेतशिखर, वगेरे छ, तेनी जात्रा जंघाचारण, विद्याचारण मुनिवरो पण करे छे, एम श्री भगवती सत्र मां फरमाव्यु छे"। - यह भी अनर्थ पूर्वक गप्प ही है / (10) प्रश्न व्याकरण के प्रथम आस्रव द्वार में हिंसा के कथन में देवालय, चैत्यादि के लिए हिंसा करने वाले को मन्द
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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