________________ ( 170) गया है उसका यह अर्थ नहीं हो सकता, वहां तो भवितात्मा अनगार की शक्ति का वर्णन है, जिसमें श्रीगौतमस्वामीजी के प्रश्न करने पर प्रभु ने फरमाया कि__ " भावितात्मा अनगार स्त्री रूप बना सकते हैं, स्त्री रूप से सारा जंबूद्वीप भर सकते हैं, पताका, जनेऊ धारण कर, तलवार, ढाल (या तलवार का म्यान) हाथ में लेकर आकाश में उड़ सकते हैं / घोड़े का रूप बना सकते हैं / इत्यादि इसके बाद यह बताया है कि-आत्मार्थी मुनि ऐसा नहीं करते और करेंगे वे "मायावी " कहे जावेंगे, उन्हें प्रायश्चित लेना पड़ेगा बिना प्रायश्चित के वे विराधक-आज्ञाबहार होंगे। इस प्रकार के कथन से श्री विजयानन्दजी लब्धि फोड़ने की सिद्धि किस प्रकार कर सकते हैं ? यहाँ तो लब्धि फोड़ने वाले को विराधक और मायावी कहा है फिर यह अन्याय क्यों ? और बिना किसी आधार के ही " संघका काम पड़े तो लब्धि फोड़े" ऐसा क्यों कहा गया ? ___ क्या साधु स्त्री रूप बना कर या घोड़ा बनकर या तलवार लेकर संघ की भक्ति या रक्षा करे ? यह माया चारिता नहीं है क्या ? स्त्री रूप से संघ सेवा किस प्रकार हो सकती है ? आदि प्रश्नों का यहां समाधान अत्यावश्यक हो जाता है। वास्तव में सूत्र में ऐसे कामों से शासन सेवा नहीं पर शासन विरोध और मायाचारीपन कहा गया है अतएव यह भी अनर्थ ही है। (7) मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० 278 में ठाणांग सू आये हुए " श्रावक " शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है___ "ठाणांग सूत्र मां श्रावक शब्द नो अर्थ कयों छे त्यां (1) जिन प्रतिमा (2) जिन मन्दिर (३)शाल (4) साधु (5)