________________ ( 167 ) मूल सूत्र के नाम से जो गप्पें उड़ाई गई हैं अब उनके भी कुछ नमूने दिखाये जाते हैं / लीजिये (1) सम्यक्त्वशल्योद्धार पृ० 6 के नोट में उत्तराध्ययन सूत्र का नाम लेकर एक गाथा लिखी है वो इस प्रकार है तीए वि तासि साहूणीणं समीवे गहिया दिक्खाकय सुव्वयनामा तव संजम कुणमाणी विहरइ / बन्धुओ ! उत्तराध्ययन के इवें अध्ययन की कुल 62 गाथाएं हैं, किन्तु इन सभी काव्यों में उक्त काव्य का पता ही नहीं, फिर उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से गप्पं क्यों उड़ाई गई? (2) मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० 237 में सूत्र कृतांग श्रुतस्कन्ध अध्ययन 6 का नाम लेकर माद्रकुमार के सम्बन्ध में लिखते हैं कि सूत्र मां तो 'प्रथम जिन पडिमा' एम स्पष्ट प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव स्वामी नी प्रतिमानो पाठ छे"। __ यह भी एक पूर्ण रूप से गप्प ही है मूल सूत्र में यह बात है ही नहीं। (3) पुनः उक्त ग्रन्थकार पृ० 221 में एक गाथा की दुर्दशा इस प्रकार करते है प्रारम्मे नत्थी दया, विना प्रारम्भ न होइ महापुन्नो। पुन्ने न कम्म निज्जरे रान कम्म निज्जरे नत्थी मुक्खी // अर्थात्-प्रारभ्भ में दया नहीं, धिना प्रारम्भ के महापुण्य नहीं होता, पुण्य से कर्म की निर्जरा होती है, निर्जरा बिना मोक्ष नहीं मिल सकता।