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________________ (165) "मणसच्च जोगणिया वय मोस जोग परिणया" और इस पाठ का अर्थ करते हैं कि-"मृगपृच्छादिक में मन में तो सत्य है और वचन में मृषा है"। ___ उपरोक्त पाठ और अर्थ दोनों असत्य है भगवती सूत्र के उक्त स्थल पर इस प्रकार का पाठ है ही नहीं, फिर यह नूतन पाठ और इच्छित अर्थ कहां से लिया गया?यह विजयानन्द जी ही जानें। (4) उपासकदशांग के आनन्दाधिकार में-'अएण उस्थिय परिगहियाणि' के प्रागे "अरिहंत' शब्द अधिक बढ़ा दिया गया है। (5) उववाई सूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन. में-'बहुला अरिहंत चेइयाई' पाठ तढ़ा दिया, कितने ही मू० पू० विद्वान तो इसे पाठान्तर मानते हैं, और कुछ लोग पाठान्तर मानने से भी इन्कार करते है। अभी थोड़े दिन पहले इन लोगोंकी 'माक्षेप निवारिणी समिति के ओर से 'जैन सत्य प्रकाश' नामक मासिक पत्र प्रकट हुश्रा है, उसके प्रारम्भ के तीसरे अङ्क पृ० 76 में 'जिन मन्दिर' शीर्षक लेख में श्री दर्शनविजयजी, उववाई का पाठ इस प्रकार देते हैं आयारवंत चेय विविह सन्निविट्ठ बहुला सूत्र ? : और अर्थ करते हैं कि-'चम्पा नगरी सुन्दर चैत्यों तथा सुन्दर विविधता वाला सन्निवेशोथी युक्त छे' / ते चम्पा वर्णनमां पाठान्तर छ केअरिहंत चेइय जण-वई-वि परिण विष्ट बहुला-सूत्र 1 अर्थ-चम्पापुरी अरिहंत चैत्यो, मानवीओ अने मुनियो ना सन्निवेशो बड़े विशाल छे।
SR No.004485
Book TitleLonkashahka Sankshipta Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchandra, Ratanlal Doshi
PublisherPunamchandra, Ratanlal Doshi
Publication Year
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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