________________ ( 164) मात्रादि न्यूनाधिक करने में क्या देर करते होंगे? और एक अावश्यक व अनिवार्य कार्य की यतना पूर्वक करने की विधि को हिंसा करने की आशा बताकर कितना महान् अनर्थ करते हैं ? जबकि-साधारण मात्रा या अनस्वारतक को न्यनाधिक करने वाला अनन्त संसारी कहा जाता है, तब पाठ के पाठ बिगाड़ देने वाले यदि अपनी करणी के फल भोग रहे हों तो आश्चर्य ही क्या है? (2) उक्त महात्मा की दूसरी बहादुरी देखिये-सम्यक्त्व शल्योद्धार चतुर्थावृत्ति पु० 184 में श्रावारांग सूत्र का पाठ इस प्रकार दिया है जाणं वा नो जाणं बदेता' अब रायधनपतिसिंह बहादुर के प्राचारांग का उक्त पाठ देखिए ____'जाणं वा णो जाणं ति वदेज्जा' उक्त शुद्ध पाठ को बिगाड़कर मनःकल्पित अर्थ करते हैं। कि-'जानता होवे तो भी कह देवे कि मैं नहीं जानता हूं, अर्थात् मैंने नहीं देखा है" इस प्रकार प्रत्यक्ष मृषावाद बोलने का विधान करते हैं किन्तु इन्हीं के मतानुयायी श्री पार्श्वचन्द्रजी बाबू के प्राचारांग में भाषानुवाद करते हुए टीका. कार के इस प्रकार झूठ बोलने के अर्थ को असत्य बताकर वहां मौन रहने का अर्थ करते हैं। (3) उक्त सूरिजी ने उसी सम्यक्त्व शल्योद्धार पृ० 185 में श्री भगवती सूत्र शतक 8 उद्देशा 1 का पाठं इस प्रकार लिखा है उपाठ