________________ बन्धुओं यह तो किंचित् नमूना मात्र ही है किन्तु यदि सारे शत्रुजय महात्मयं को भी गपौड़ा शास्त्र कहा जाये तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है / ऐसे सपौड़ शास्त्रों को किस प्रकार श्रागम वाणी मानी जाय ? इसी लिये इनके बनाये हुए ग्रन्थ प्रामाणिक नहीं माने जाते, और ऐसे ग्रन्थों को अप्रमाणित घोषित कर देना ही साधुमागियों की न्याय परता है। इसी प्रकार 32 सूत्र के बाहर जो सूत्र कहे जाते हैं और जिनका नामोल्लेख नन्दी सूत्र में है उनमें भी महामना (?) महाशयों ने अपनी चतुराई लगा कर असलियत बिगाड़ दी श्रतएव उनके भी बाधक अंश को छोड़ कर आगम सम्मत अंश को हम मान्य करते हैं। जिस महानिशीथ का नाम नंदी सूत्र में है उसमें भी बहुत परिवर्तन होगया है ऐसा उल्लेख स्वयं महानिशीथ में भी है, और मंडल प्रश्नोत्तर कर्त्ता भी लिखते हैं कि ( महानिशीथनो ) पाछलनो भाग लोप थई जवाथी जेटलो मली श्राव्यो तेटलो जिनाचा मुजब लखी दी, इस प्रकार शुद्धि और जिर्णोद्धार के नाम से इन लोगों ने इच्छिन अंश इन खडिन या अखंडित सूत्रों में मिला दिया है। अन्य सूत्रों को जाने दीजिये, अंगोपांग में भी इन महानुभावों ने अनेक स्थानों पर न्यूनाधिक कर दिया है, और अर्थ का अनर्थ भी। इसके सिवाय भावों को तोड़ मरोड़ने में तो