________________ (15) महान् लाभकारी मार्ग कोई सुविहित बता सकता है? शायद इसी महान् लाभ के फल विधान को जानकर इससे भी अत्य. धिक लाभ प्राप्त करने को पालीताने में सम्पत्तिशाली भक्तों ने रसोड़े भोजनालय खोल रक्खे होंगे? . .. इस हि पात्र से तो श्रेणिक, कौणिक, कृष्ण, सुभूम और ब्रह्मदत्त आदि महाराजा लोग या तो मूर्ख या मक्खीचूस होंगे, जो ऐसे सस्ते सौदे को भी नहीं पटा सके और तो ठीक पर भगवान महावीर प्रभु का अनन्य भक्त ऐसा सम्राट कौणिक जो प्रभु के सदैव समाचार मंगवाया करता था, और इस कार्य के लिये कुछ सेवक भी रख छोड़े थे, वह एक छोटासा मन्दिर भी नहीं बना सका? कितना कंजुस होगा? इसीसे तो उसे नर्क में जाना पडा ? यदि वह कम से कम एक भी मंदिर बनवा देता तो उसे नर्क तो नहीं देखनी पड़ती ? पाठक बन्धुश्रो ! आश्चर्य की कोई बात नहीं, यह सब लीला स्वार्थ देव की है, यह शक्तिशाली देव अनहोनी को भी कर बताता है / अब ऐसी ही पौराणिक गप्प आपको और दिखाता हूं। ___ मूर्ति पूजक बन्धु शत्रुजय पर्वत के समीर की शत्रुजया नदी के लिये इस प्रकार गाते हैं किकेवलियों के स्नान निमित्त,। ' इशान इन्द्र प्राणी सुपक्ति / नदी शQजय सोहामणी। ... . ___ भरते दीठी कौतुक भणी॥ अर्थात् केवल शानियों के स्नान के लिये इशानइन्द्र स्वर्ग से शत्रु की नदी लाया, यह देखकर भरतेश्वर को प्राश्चर्य