________________ ( 154 ) - नव कोड़ी ने फूलड़े, पाम्यो देश प्रहार / कुमार पाल गजा थयो, बन्या जय जयकार / अर्थात्-केवल नो कोड़ी के फूलों से मूर्ति की पूजा करके ही कुमारपाल अठारह देश का गजा हुआ / ऐसा पूर्व जन्म का इतिहास तो बिना विशिष्ट ज्ञान के कोई नहीं बता सकता, और अवधि आदि विशिष्ट ज्ञान का कथाकार के समय में अभाव था, तब ऐसी पूर्व भव की बात और उस पुष्प पूजा क' ही अठारह देश पर राज्य का फल कैसे जाना गया ? क्या यह मन गढन्त गप्प गोला नहीं है। पाठक स्वयं विचारें तो मालुम होगा कि स्वार्थ परता क्या नहीं कराती ? और देखिये कल्प सूत्र व आवश्यक की कथा है उसमें यह बतलाया है कि-दश पूर्व धर श्रीमद् वज्रस्वामीजी महाराज मूर्ति पूजा के लिए आकाश में उड़कर अन्य देश में गये और वहां से बीम लाख फूल लाकर पूजा करवाई। पाठक वृन्द ! जब श्रीमद्वजस्वामी जैसे दशपूर्वधर महान् आचार्य भी मूर्ति पूजा के लिए लाखों फूल अनेक योजन माकाश मार्ग से जाकर लाये और पूजा करवाई तब माजकल के साधु लोग मन्दिर के बगीचे में से ही थोड़े से फूल तोड़कर पूजा करें तो इसमें क्या बुरी बात है ? इन्हें भी चाहिए कि प्रातः काल होते ही ये वृक्ष और ल तामों पर टूट पड़ें, जितने अधिक फूलों से पूजेंगे उतना अधिक फल होगा, और उतने ही अधिक फूलों के जीवों की इनके मतानुसार दया भी होगी / यदि यह कहा जाय कि-श्री वज्र स्वामी ने उस समय अन्य देशों से पुष्प लाकर शासन की बड़ी भारी प्रभावना की और राजा जैन धर्म